गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

नवजात शिशुओं को होने वाली बिमारियां



बच्चे जब बीमार होते हैं तो आपकी चिंताएं बढ़ जाती हैं। घर पर नवजात शिशु  की किलकारी गूंजने से जो खुशी होती है वो उसके बीमार होते ही चिंता में बदल जाती है। हालांकि नवजात शिशु को शुरुआती एक साल में होने वाली कई कॉमन बिमारियां गंभीर नहीं होती है बशर्ते उनका सही इलाज हो और देखभाल सही तरीके से हो।

सर्दी, कफ, बुखार, उल्टी, दस्त, स्किन रैशेज, क्रेडल कैप (सिर में घाव होना) आदि कई ऐसी बीमारियां है जो परेशान तो करती है मगर सही इलाज और देखभाल के बाद सब ठीक हो जाती है।

दूसरी तरफ, कुछ ऐसी गंभीर बीमारियां भी हैं जो बच्चे को परेशान करती हैं। मगर इसकी चेतावनी यानि लक्षण-संकेत मिलते ही एक्सपर्ट डॉक्टर से इलाज तत्काल शुरु हो जाए तो बच्चे को ज्यादा खतरा नहीं रहता है।



नवजात शिशुओं की कॉमन बिमारियां 


सर्दी-खांसी-कफ 

आमतौर पर वातावरण में हुए बदलाव से नवजात शिशु को सर्दी-कफ की शिकायत होती है। मां के गर्भ से निकलने के बाद उसके शरीर पर मौसम का प्रभाव पड़ता है। एलर्जी और संक्रमण से भी बच्चों को सर्दी-कफ हो सकती है। इसके लक्षण को जानते ही जल्दी उपचार करने से बीमारी ठीक हो जाती है। कभी-कभी कफ की बीमारी गंभीर हो सकती है जब आपके बच्चे को गैस्ट्रोफेगल रिफलक्स की शिकायत हो। इसमें कफ होने पर बच्चा जब खांसता है तो उल्टी होने लगती है।



गैस्ट्रोफेगल रिफ्लक्स 


गैस्ट्रोफेगल रिफलक्स बच्चे की पेट की बीमारी है, जिसमें पेट में दर्द हो सकता है, अपच होने से दूध पीने के बाद उल्टी हो सकती है। यह नवजात में होने वाली एक कॉमन बीमारी है। बच्चा दूध पीने के बाद डकार लेता है और उसे उल्टी आ जाती है। इनके पीछे कई आम कारण हैं। दूध नहीं पचने के कारण या फिर मां ने कुछ ऐसी चीज खाई हो जिससे एसिडिटी बढ़ जाए।


उल्टी 


उल्टी भी बच्चों की एक आम बीमारी है। अगर यह कभी-कभी अपच या गैस्ट्रोफेगल रिफलक्स से होती है तो घबराने की बात नहीं है। मगर जब यह बराबर हो, दूध पिलाने के बाद खासकर तो यह गंभीर हो सकती है। डायरिया के साथ भी अगर उल्टी आए तो यह गंभीर मामला है। बोतल से दूध पिलाने में ऐसी शिकायत बराबर होती है। ऐसे मामले में बच्चे को तुरंत अस्पताल में भर्ती कर देना चाहिए और उसके वजन पर ध्यान देना चाहिए।

ध्यान रहे बच्चे को दूध पिलाने के बाद अगर उसे आप कंधे पर लिटा देते हैं तो उल्टी होना स्वाभाविक है। अगर बच्चा डकार ले तो ठीक है, नहीं तो उसे सीधे के पोजीशन में रखें या फिर लिटा दें।


बुखार 


बुखार लगना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें शरीर संक्रमण से लड़ता है। सामान्य बुखार ज्यादा चिंताजनक नहीं है, मगर वायरल इंफेक्शन या फिर निमोनिया और टाइफाइड जरुर गंभीर है। बुखार अगर ज्यादा हो तो डॉक्टर के पास जरुर जाएं।

उदरशूल 

उदरशूल में पेट में दर्द होता है। आंत में अम्ल बनने या कुछ फंस जाने के कारण यह होता है। बच्चों को पेट दर्द है यह आसानी से पता नहीं चलता है। अगर वो लगातार रो रहा है और कुछ असामान्य महसूस कर रहा है तो मां को इस बात की जानकारी पहले होती है।

अगर बच्चा एक दिन में 3 घंटा से ज्यादा रोता है तो यह समझ लेना चाहिए कि उसे पेट में दर्द हो रहा है या कुछ गड़ब़ड़ी है। हालांकि रोने की कोई और भी वजह हो सकती है।


पीलिया 

पीलिया बच्चों में एक कॉमन बीमारी हो गई है। मां के गर्भ से निकलते ही कई मामलों में नवजात को पीलिया की शिकायत देखी जा रही है। डॉक्टर ऐसे बच्चों को आमतौर पर फोटोथेरेपी देते हैं। पीलिया में बच्चे की त्वचा, आंख और छाती का रंग पीला हो जाता है। पीला रंग रक्त में बिलुबरीन बनने से होता है। सामान्यतया लीवर का काम है कि वो बिलुबरीन को बनने नहीं देता या उसे कम कर देता है। अक्सर होता यह है कि जन्म के तुरंत बाद कई बच्चों का लीवर सही से काम नहीं करता है और ऐसे केस में पीलिया हो जाती है।


आरएसवी 

आरएसवी एक वायरल बीमारी है जिसमें बच्चे को सांस लेने में परेशानी होने लगती है और अस्पताल में भर्ती करने तक की नौबत आ जाती है। यह जन्म लेने के एक साल तक हो सकती है। सामान्य सर्दी, नाक बहना, बुखार, कफ जो हफ्ता भर तक रहे, इसके लक्षण हैं। यह तब गंभीर हो जाती है जब यह सांस के नली को च़ॉक कर दे या फिर फेफड़ा को प्रभावित करने लगे।

अगर RSV का संक्रमण फेफड़ा को प्रभावित करती है तो फिर वायरल निमोनिया जैसी जानलेवा बीमारी भी हो सकती है। इसमें डॉक्टर भाप लेने और नमी वाले जगह में नहीं रहने की सलाह देते हैं। बच्चे के आसपास किसी को धुंआ करने नहीं दे, खतरनाक हो सकता है।


निमोनिया 

निमोनिया आम सर्दी-खांसी और बुखार से अलग है। निमोनिया बच्चों के लिए जानलेवा भी कभी-कभी साबित हो जाती है। यह फेफड़े में संक्रमण की बीमारी है। यह वायरल और बैक्टेरियल दोनों तरह के संक्रमण से हो सकता है। आमतौर पर नवजात को को RSV के संक्रमण से निमोनिया होती है। बड़े बच्चों को दूसरे बैक्टरेयियल और वायरल संक्रमण से निमोनिया होती है। नवजात को वायरल निमोनिया होने पर तेज बुखार, सांस तेज, सांस लेने में परेशानी, खांसी होने लगती है। बच्चे खाना-पीना छोड़ देता है और काफी कमजोर हो जाते हैं। ज्यादा गंभीर होने पर नाड़ी तेज चलने लगती है और छाती में धौंकनी जिसे चमकी भी कहते हैं शुरु हो जाती है।कई मामलों में बच्चों को निमोनिया के साथ डायरिया की भी शिकायत होते देखा गया है। निमोनिया में बच्चों को भर्ती किया जाता है और ऑक्सीजन लगाई जाती है। एंटीबायोटिक सुई और दवा से ही इसका इलाज संभव है।


डायरिया 

डायरिया में नवजात शिशु को लगातार पतला दस्त आने लगता है और शरीर में पानी की कमी हो जाती है। यह प्रायः वायरल और बैक्टेरियल संक्रमण के कारण होता है। एलर्जी और दवाइयों के साइड इफेक्ट से भी डायरिया होती है। डायरिया में सबसे खतरनाक है वायरल डायरिया और इसमें दस्त में बिल्कुल पानी ही निकलता है।
स्तनपान कर रहे शिशु को एक दिन में दस से बारह बार दस्त हो सकता है। मगर इससे ज्यादा हो और सिर्फ पानी निकले तो बच्चे को अस्पताल में तुरंत भर्ती कर देना चाहिए। अगर बच्चे के वजन में अचानक कमी हो जाए तो डायरिया खतरनाक साबित हो सकता है। इसमें डॉक्टर बच्चों को नस के जरिए पानी और इलेक्ट्रोलाइट  चढ़ाते हैं ताकि बच्चे के शरीर में पानी की कमी न हो

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