गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

बच्चों को सही भोजन की आदत कैसे डालें




अक्सर माता – पिता शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा सही तरीके से खाना नहीं खाता है |  इसके लिए माता – पिता खुद जिम्मेदार होते है | वे अपने बच्चों में खानपान सम्बन्धी सही आदतें समय पर नहीं डालते हैं | ज्यादातर बच्चे इस समस्या से परेशान हैं. कामकाजी माता पिता अपने बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाते हैं, इसलिए उनका सारा ध्यान बच्चे के भोजन की ओर केंद्रित हो जाता है. गड़बड़ी यहीं से शुरू होती है. वह बच्चे पर भोजन के लिए अनावश्यक दबाव डालते हैं, लिहाजा बच्चे का मन भोजन से उचट जाता है.


बच्चे के स्वास्थ्य के लिए कितना भोजन आवश्यक है, माता-पिता को इसकी सही जानकारी होना जरूरी है. आमतौर पर छह माह का होने पर अन्नप्राशन के बाद ही बच्चे को अनाज खिलाया जाता है, मगर अब बाल विशेषज्ञ चार माह की उम्र से ही शिशु को ठोस आहार देने की सलाह देते हैं. 4 महीने की उम्र से ही बच्चे में खानपान की सही आदत विकसित करना जरूरी है. शुरू के 3 महीने बच्चा पूरी तरह मां के दूध पर निर्भर रहता है. 4 महीने का होने पर उसे दूध के अलावा फलों का रस और थोड़ा अनाज देना शुरू करें.



छोटे बब्चे का आहार कैसा होना चाहिए  

4 या 6 महीने की उम्र से बच्चे को दाल का पानी, सूजी की पतली खीर, मसला हुआ केला, उबला सेब, संतरा खिलाने से उसकी सेहत अच्छी रहती है.

 अनाज में चावल से इसकी शुरुआत की जा सकती है. चावल सुपात्र होता है और इसमें सबसे कम एलर्जी के तत्व होते हैं. पांच छह महीने का होने पर उसे सब्जियों का सूप, चावल दाल का पानी, या घुटी हुई पतली खिचड़ी दी जा सकती है.

 दो-ढाई साल के बच्चे को नई नई रेसिपी बनाकर खिलाएं, ताकि भोजन में उसकी रुचि बनी रहे. दिन में तीन बार उसे कुछ ठोस खाने को दें. बच्चे में भोजन करने की आदत का विकास तभी होता है, जब उसे वक्त पर सही मात्रा में भोजन दिया जाता हो. हर समय खाते रहने की आदत ठीक नहीं होती.

 3 से 5 साल के बच्चे को रात में सोते समय दूध पीने को ना दें. उसे सुबह और शाम दो बार ही दूध दें. 3 साल के बच्चे को तीन बार दूध दिया जा सकता है, लेकिन धीरे-धीरे दूध पर उसकी निर्भरता को कम करते जाना चाहिए. उसे ठोंस चीजें खाने की आदत डालें और दूध की मात्रा कम कर दें. उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसकी खुराक बढ़ाएं. बच्चे को थाली में भोजन लगा कर दें. भोजन में थोड़ी थोड़ी मात्रा में दाल, चावल, सब्जी, दही, रोटी आदि रखें. ऐसा करने से बच्चा खुद खाना-खाना सीखता है. कई बार मांयें बच्चे को अपने आप इसलिए भोजन नहीं करने देती कि वह खाना गिराएगा. लेकिन ऐसा करना उचित नहीं है.

 उनको स्नैक्स और जंग फूड कम से कम दे. भोजन के बीच में कम से कम 3 से 4 घंटे का अंतराल रखें. उसका भूख को महसूस करना जरूरी है. भूख लगने पर किया गया भोजन ही स्वास्थ्यवर्धक होता है.


 अक्सर माता-पिता शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा दाल और सब्जी नहीं खाता है. बच्चे में सब कुछ खाने की आदत डाली जा सकती है. हां, इसके लिए काफी प्रयास करना पड़ सकता है.

 अनाज, रेशेदार फल और सब्जी न खाने वाले बच्चों में कब्ज की शिकायत पाई जाती है. जिससे उनकी सेहत प्रभावित होती है. माता पिता को यह वहम भी होता है कि उनका बच्चा कुछ नहीं खाता है, जबकि बच्चा अपनी जरूरत भर खा लेता है. बच्चे का पूर्ण शारीरिक विकास तभी संभव है जब वह संतुलित आहार ले रहा हो. 3 से 10 साल के बच्चे का वजन साल भर में 2 किलो और लंबाई 2 इंच बढ़ने का मतलब है कि उसका पोषण ठीक हो रहा है.
 बच्चे को वक्त पर पौष्टिक भोजन देना उसकी सेहत के लिए सबसे अच्छा होता है.




क्या सावधानिया रखे


 अकेले माता पिता के प्रयासों से बच्चे में खाने की सही आदत नहीं डाली जा सकती है. इसके लिए पूरे परिवार को सहयोग करना होगा. यह ना हो कि माता-पिता तो उसे अनुशासित करें, मगर दादा-दादी या नाना-नानी उसकी चॉकलेट या कोल्ड ड्रिंक की फरमाइशें पूरी करते रहें.

 कई बार बच्चा जिद की वजह से सचमुच ही कुछ नहीं खाता और खाने की जगह कोल्ड ड्रिंक या चॉकलेट मांगता है. बच्चे की इस आदत को बढ़ावा ना दें, ना ही उसकी जिद पूरी करें. भोजन के दो-तीन घंटे बाद उसे वह चीज दे सकते हैं, जिसके लिए वह जिद कर रहा हो. लेकिन इसे उसकी आदत न बनने दें.

 मीठे और चिपकने वाले खाद्य पदार्थों से सेहत को नुकसान पहुंचता है. चॉकलेट, टॉफी, चुइंगम, कोल्ड ड्रिंक दांतों में लगे रह जाते हैं, जिससे कीटाणु पैदा होते हैं. इससे दांत में कीड़े भी लग जाते हैं.

 ज्यादा टाफी या बिस्किट खाने से बच्चों में खून की कमी हो जाती है, क्योंकि रेशेदार भोजन ना करने से उसे कब्ज रहने लगता है. धीरे-धीरे उसका शारीरिक विकास धीमा पड़ जाता है, कद नहीं बढ़ता और वजन भी घटने लगता है.

 बच्चों के साथ भोजन में जोर जबरदस्ती ना करें. अनुशासन का मतलब यह नहीं है, कि उन्हें जबरदस्ती खाना खिलाएं. ऐसा करने से बच्चे भोजन में रूचि खो बैठते हैं.


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